गुरुवार, 21 मई 2009

मालिक की आवाज पर नाचता मीडिया

मीडिया जो न करे वह कम है, यानी "राई ते पर्वत करे, पर्वत राई माहिं।" वह आज का साई 'बोले तो' मालिक है। उसके भी दो माई-बाप हैं, एक सरकार और दूसरा कारपोरेट। इन्हीं के लिए वह अपने मालिक की आवाज कुछ इस तरह से ता-ता, थैया करता है कि ,एचएमवी के रिकार्ड पर। उत्तराखंड भी इससे अलग तो नहीं परंतु मुख्यमंत्री की आरती उतारने को लेकर यहां के कुछ दैनिकों के संपादकों का उत्साह देखते ही बनता है, चुनावों में तो यह एक दुर्लभ दृश्य होता है! ऐसा उत्साह तो भगवान बद्रीनाथ के कपाट खुलने के बाद होने वाली पहली आरती के लिए रावल को भी नहीं होता होगा!! इधर चुनाव का ऐलान हुआ उधर मीडिया ने लमलेट "बोले तो" साष्टांग दंडवत होने का ऐलान कर दिया, अलबत्ता राज्य सरकार सेवार्थ बिछने के लिए इन सज्जनों की मुद्राएं उनकी डीएनए संरचना के हिसाब से भिन्न-भिन्न थीं। एक महाशय तो जनरल के रंगरूट बनकर कलम लहराते हुए खुद ही मैदान में उतर आए मानो कह रहे हों,'मो सम कौन बलवंता।'एक लोकल चैनल में इंटरव्यू देते हुए इन्होंने महान उदगार व्यक्त किए कि स्विस बैंकों से काला धन वापस लाने का मामला उत्तराखंड में सबसे प्रभावी चुनावी मुद्दा रहा, तब तक चुनावी नतीजे नहीं आए थे। उत्तराखंड की जनता के फैसले से भाजपा के साथ संपादक जी भी धड़ाम। संपादक जी की बीमारी उनके स्टाफ के सौजन्य से राजधानी की सबसे बड़ी खबर बन गई।

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