शनिवार, 23 मई 2009
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मैं बीरबल हूं! सदियों से किताबों के भीतर किस्सों में उकता गया हूं। मैं सोच भी नहीं सकता था कि इतनी सदियां गुजर जाने के बावजूद राजनीति हमारे समय के विदूषक दरबारियों से इस कदर भरी होगी। सच कहूं, मौजूदा राजनीति में मध्ययुग का घटिया पोलिटिकल प्रोडक्ट आज के सत्ता बाजार (अंग्रेजी में बोलने पर 'सट्टा बाजार') में चल सकता है तो मेरा हास्य क्यों नहीं? मैं सम्राट अकबर का नवरत्न बीरबल पूरे होशोहवास में यह ब्लाग शुरू कर रहा हूं।
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